ध्यान मूल गुरु रूप है, पुजा मूल गुरु पांव।
मंत्र मूल गुरु वचन है, मोक्ष मूल सद्भाव॥
सत्यनाम सद्गुरु दया -
      जानने योग्य कोइ वस्तु है तो वह सत्य ही है। जिसका किसी काल में नाश न हो वह सत्य ही है, उस परम सत्य और सद्ज्ञान की प्राप्ति ही मानव का परम कर्तव्य है, सत्य की प्राप्ति वही करता है जो स्वयं सत्य हो। संसार में सत्य व असत्य दोनों हैं
"साँच झूठ का यह संसार, साँच आत्मा झूठ पसार्।
साँचा कियो झूठ में वास, क्रम क्रम तजे झूठ की आस्॥"
      इस संसार में साँच और झुठ मिली हुई है, इसमें आत्म व सद्ज्ञान ही सत्य है। भाव यह कि आत्मा (शुध्द चेतन) सत्य है और मन तथा माया आदिक असत्य है। जीव के हृदय में प्रपंच का कचरा तथा अंधेरा भरा है, हृदय से उस प्रपंच को हटाने के लिये साधन की आवश्यकता है, साधनो में 'शब्दयोग' सद्गुरु वचन है और शब्दों में सारशब्द! परमसत्य को जानना, विश्व-शांति-कल्यान जीवउत्थान ही उद्देश्य है।